पगड़ी एक तरफ झुक गया है(शिरपेच कलला) महाराज!
बोध कथा!!
एक बार की बात है माधवराव पेशवा(मराठा साम्राज्य के 9 वें पेशवा) दरबार में बैठे थे तभी उनका एक सेवक थोड़ा सकुचाते हुए उन्हें निवेदन किया -” महाराज ! आपला शिरपेच कलला “[ यह मराठी वाक्य है जिसका अर्थ है महाराज ! आपका पग (पगड़ी) एक तरफ झुक गया है ]
वह सेवक राजमहल में पानी भरने का काम करता था । माधवराव जी ने उसे सिर से पैर तक निहारा फिर गंभीरता से पूछा “दिन भर में कितना पानी भरते हो ?”
“पचास कावड़… अर्थात् सौ कलसे महाराज” असम्बद्ध प्रतिप्रश्न से सेवक थोड़ा घबरा गया ।
“कल से महीना भर तक रोज सौ कावड़ याने दो सौ कलसे पानी भरना”
“ज .. जी… जी महाराज” दरबारी परम्परा के अनुरूप प्रणाम कर डरा, घबराया सेवक वहाँ से हटकर अपने काम पर लग गया ।
बाद में शांत और अनुकूल समय मे सर नौबत ने पूछा “महाराज छोटी सी बात कही थी वह भी सुधार के लिए, उसके लिए सेवक को दंडित करने का कारण समझ नहीं सका, वह भी महीने भर का ?” कृपया मार्गदर्शन करें
माधवराव जी ने गंभीरता से उत्तर दिया ” राव ! जिस व्यक्ति का अपने काम में पूरा ध्यान ना हो या जिसके पास क्षमता से कम काम हो वही दूसरों के काम में दखलंदाजी करता है । अपने काम पर केंद्रित ना रहने का दण्ड तो मिलना ही चाहिए”
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सेंट्रल विस्टा(नवीन संसद भवन) पर लगे राष्ट्रीय प्रतीक में शेरों का मुँह खुला है, ज्यादा खुला है, दहाड़ रहा है, पहले नहीं था…. अनावरण के बाद से यही चल रहा है जबकि सारनाथ म्यूजियम में रखी ओरिजिनल अशोक स्तम्भ में शेर का मुख खुला है अर्थात शेर दहाड़ रहा है।