विवाह के लिए रखे पैसों से गुरुकुल शुरू करने वाली सुमेधा
भारत को पुनः विश्व गुरु बनने के लिए अपनी पुरानी शिक्षा प्रणाली अर्थात गुरुकुल व्यवस्था को पुनः लागू करना होगा या गुरुकुल के तत्वों को अपनी शिक्षा व्यवस्था में स्थान देना पड़ेगा। इसी ध्येय को यूपी के अमरोहा जिला के गांव चोटीपुर की सुमेधा अपनी कर्मो से मूर्त रूप दे रही हैं। वह समाज के लिए जो कर रही हैं, वह मिसाल बन गया है। वह ऐसी बगिया (श्रीमद दयानंद कन्या गुरुकुल) है जिसमें मेधा के सुगंधित पुष्प खिल रहे हैं।छः छात्राओं से शुरू हुआ यह गुरुकुल अब 15 राज्यों की 950 छात्राओं के भविष्य को सँवार रहा है। अलग-अलग भाषा और खानपान वाली छात्राओं को देखकर एक छत के नीचे ‘लघु हिन्दुस्तान” की अनुभूति होती है।
यहां की बेटियां ओलिंपिक और प्रशासनिक सेवाओं तक पहुंच रही हैं । गुजरात के राज्यपाल डा. देवव्रत आचार्य की पौत्री वरेण्या भी यहीं पढ़ रही हैं।
गुरुकुल से पढ़ी हैं सुमेधा:-
सुमेधा की शिक्षा गुरुकुल में ही हुई है।इनके पिता हरगोविंद सिंह ने इनको 10 वर्ष की आयु में दिल्ली के नरेला स्थित गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेज दिया। यहां छठी से आचार्य तक अध्ययन करने के बाद वह हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी चली गईं। एमए व वेदों में अग्निदेवता विषय पर पीएचडी की।
स्त्री शिक्षा के लिए जीवन समर्पित:-
अविवाहित जीवन जीने वाली महिलाओं ,लड़कियों को समाज में अच्छी दृष्टि से नही देखा जाता।समाज के भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।वर्ष 1987 में जब गांव पहुंचीं तो, उन पर विवाह के लिए काफी दबाव बनाया गया। सुमेधा कई जगह स्त्रियों की दशा देख व्यथित थीं।ऐसे में उन्होंने शादी से इन्कार किया और बेटियों को आत्मनिर्भर,संस्कारित ,सुशिक्षित व स्वावलंबी बनाना ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया । उनका मानना है कि शिक्षा से ही बेटियों को आगे चलकर मजबूती मिलेगी। अपने इस निश्चय को पूर्ण करने के लिए आजीवन गृहस्थ जीवन से दूर रहने का प्रण किया।
विवाह के लिए रखे पैसे से गुरुकुल :-
पिता हरगोविंद सिंह से अपने विवाह के लिए जमा किए गए 45 हजार रुपये लिए और गांव के बाहर खेत में दो कमरों का निर्माण कराया।
छह मार्च 1988 को छह बच्चियों के प्रवेश के साथ इन्हीं कमरों से शिक्षण कार्य शुरू किया।समाज की धारा के विपरीत चलने पर कई लोगों ने तंज भी कसे जाते रहे लेकिन वह अपने संकल्प पर अड़ी रहीं। यहां की पढ़ी बेटियों ने जब हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखाने लगीं तो आलोचक प्रशंसक होने लगे। बेटियों की सफलता से प्रभावित होकर समाज भी आर्थिक मदद करने लगा । आज दो कमरों वाले गुरुकुल ने विशालकाय महाविद्यालय का आकार ले लिया है। जिसके अंदर आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ वेद मंत्र गूंज रहे हैं जिसकी ख्याति पूरे देश में फैल रही हैं।
आचार्य सुमेधा जी बतातीं हैं कि प्रारम्भ में उन्होंने गरीब मेधावी लड़कियों को अपने खर्च पर पढ़ाना शुरू किया। फिर आर्थिक रूप से संपन्न लोग खुद बेटियों के प्रवेश को गुरुकुल आने लगे तथा आर्थिक सहयोग भी करने लगे।वर्तमान समय में आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों को यहां बिना शुल्क जबकि, संपन्न परिवार की बेटियां लगभग 36 हजार रुपये वार्षिक सहयोग के साथ पढ़ रही हैं।इस शुल्क में इनका रहना, खाना, कापी-किताब यूनीफार्म सभी खर्च सम्मिलित है। उन्होंने बताया कि उनके जीवन का लक्ष्य बेटियों को शिक्षित व सशक्त बनाना है।उनका कहना है कि मैंने जिस ध्येय से यह गुरुकुल खोला था उसमें मुझे काफी हद तक कामयाबी मिली है
ओलम्पिक में गुरुकुल की बेटियाँ:-
गुरुकुल की बेटियों को संस्कारित करने के साथ वीरांगना बनाने के लिए आचार्य सुमेधा ने करीब पांच तीरंदाजी प्रतियोगिता शुरू कराई। इसमें पारंगत चार बेटियां सुषमा, रेणू, पुण्यप्रभा व सुमंगला ने नेशनल में स्वर्ण पदक झटका और ओलिंपिक व वर्ल्ड कप तक सफर पूरा किया। हालांकि पदक से दूर रह गईं।
शीर्ष संस्थानों में भी हैं गुरुकुल की पढ़ी बेटियां:-
छात्रा अनु आर्य का शोध के लिए आइआइटी मुंबई में चयन हुआ है। छात्रा वंदना उत्तराखंड के प्रशासनिक संवर्ग में अपनी सेवाएं दे रही हैं। नंदिनी केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद व सोनिया इग्नू में प्रोफेसर हैं। सैकड़ों अन्य बेटियां उच्च शिक्षा में अपना योगदान दे रही हैं।
आचार्य सुमेधा की राह पर गुरुकुल की आठ बेटियाँ:-
आचार्य सुमेधा से प्रेरित गुरुकुल की आठ बेटियां भी गृहस्थ जीवन से दूर रहकर आजीवन बेटियों को शिक्षित करने का महाव्रत ले चुकी हैं। कल्पना, अमिता, सविता, रुचि, सुनीति, सुषमा, मीनाक्षी और सीता शामिल हैं। ये सभी डाक्टरेट की उपाधि ग्रहण करने के साथ ही नेट जेआरएफ और गोल्ड मेडलिस्ट हैं। इनका कहना है कि आचार्य सुमेधा के संघर्षों के आगे उनका संकल्प बहुत छोटा है।
बेटियों के उत्थान के लिए आचार्य सुमेधा ने जिस त्याग व समर्पण के साथ गुरुकुल की स्थापना की है, उसके लिए यह समाज उनका सदैव आभारी रहेगा।आधुनिक शिक्षा के साथ वैदिक ज्ञान के इस शिक्षा केन्द्र(गुरुकुल) से अन्य शिक्षा व्यवसायियों को सीखने की आवश्यकता है।
Bahut achchi jankari bhaiya.