पुरी शंकराचार्य द्वारा दलित सांसद से चरण स्पर्श न कराने के पीछे की सच्चाई।
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर पुरी के शंकराचार्य के साथ,इटावा सांसद डॉ राम शंकर कठेरिया की एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसमे यह दिख रहा है कि, डॉ कठेरिया जी उनका चरण स्पर्श करने जा रहे थे और शंकराचार्य जी ने ऐसा नहीं करने दिया। कठेरिया जी दलित समाज से आते हैं यह कहा जा रहा है कि, एक दलित होने के नाते, उन्हे शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने चरण स्पर्श नहीं करने दिया पर, सच तो यह है कि शंकराचार्य का चरण स्पर्श चाहे वह ब्राह्मण हो ,क्षत्रिय हो या वैश्य हो या दलित,चाहे वह अमीर हो या सांसद विधायक मंत्री हो,किसी के भी द्वारा नहीं किया जा सकता है। यह शंकर परंपरा के अनुसार, वर्जित है।मुझे विगत दो माह पूर्व भुवनेश्वर(ओडिसा) के रेल ऑडिटोरियम में पुरी शंकराचार्य जी के कार्यक्रम में सम्मिलित होने का सौभाग्य मिला।उस कार्यक्रम में शंकराचार्य जी ने देश,समाज,धर्म,अध्यात्म आदि से सम्बंधित अनेकों प्रश्नों का जवाब दिया।इस कार्यक्रम में किसी स्त्री/पुरुष ने शंकराचार्य जी के चरण स्पर्श नही किया। कार्यक्रम के अंत में मंच के नीचे चांदी की खड़ाऊ(पदवेश/चप्पल)रखी गई थी जिसको सभी ने बारी-बारी से प्रणाम किया।यह खड़ाऊ शंकराचार्य जी के चरण के प्रतीक स्वरूप ही रखे गए थे।
अभिषेक शंकर त्रिपाठी जी ने अपना व्यक्तिगत अनुभव बताते हुए एक प्रसंग को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है और लिखा है कि डॉ चंद्रेश कुमार उपाध्याय जी ने आदिगुरु शंकराचार्य जी को निमंत्रित किया था और उनके आदेश से ही कुछ भक्तगण मुझे अंदर ले गए और ड्राइंग रूम में बैठा दिया। फिर उन्होंने धीरे से कहा, शंकराचार्य जी अभी कुछ लोगो से मिल रहे हैं, थोड़ी देर में अकेले होते हैं तो, आप उनके दर्शन कर लीजिए।
थोड़ी देर के बाद, अंदर से एक सन्यासी, बाहर आए और उनके साथ, वे लोग भी जो अंदर शंकराचार्य के दर्शनार्थ गए थे।
एक ऊंचे भव्य आसान पर आचार्य विराजमान थे और उनके पांव के नीचे एक चौकी रखी थी। उसी के आगे एक और छोटा सा पीढ़ा रखा था। वहीं नीचे उनके एक शिष्य बैठे थे। कमरे में कालीन बिछी थी और कोई कुर्सी नहीं थी। जब उनके आसान के नजदीक आया और प्रणाम की मुद्रा में झुका तो उनके शिष्य ने मुझे रोक दिया और कहा कि, चरणस्पर्श न करें। आचार्य का चरण स्पर्श नहीं किया जाता है। मैं रुक गया और प्रणाम कर के वही बैठ गया शंकराचार्य जी ने मुस्कुराते हुए आशीष की मुद्रा में अपना हाथ उठा दिया। दस मिनट तक हम वहां बैठे फिर उनके शिष्य से यह पूछ कर कि, प्रस्थान का प्रोग्राम जब हो तो, बता दीजियेगा। उन्होंने कहा एक दिन बाद।
दस मिनट के बाद, उनके एक शिष्य, मुझे बाहर छोड़ने आए और कहा कि प्रसाद लेकर जाइयेगा। उनके शिष्य से मैने पूछा कि, शंकराचार्य का चरण स्पर्श क्यों नहीं किया जाता तो, उन्होंने कहा कि, “राजा और शंकराचार्यों का देह स्पर्श वर्जित है। जो श्रद्धालु उनका चरण स्पर्श करना चाहे, उनके चरण के आगे रखे लकड़ी के पीढ़े को स्पर्श कर लें, यही परंपरा है। यह व्यवस्था जाति निरपेक्ष है, चाहे वह ब्राह्मण हो या दलित, किसी को भी शंकराचार्यों के चरण स्पर्श की अनुमति नहीं है।”
प्रोपगेंडा फैलाने वाले बिना वास्तविकता जाने ही या जानबूझकर इस खबर को फैला रहे है जिससे कि दलितों के मन मस्तिष्क में हिन्दू धर्म और धर्माचार्यों के प्रति नफरत फैलाई जा सके और यह सैकड़ो वर्षो से किया जा रहा है।
दलित सांसद कठेरिया ने प्रोपगेंडा फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की मांग की है।